बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल
अध्याय - 5
मानव अधिवास
(Human Settlements)
मानव द्वारा निर्मित या संशोधित सभी प्रकार के भू-दृश्य सांस्कृतिक भू-दृश्य कहलाते / अधिवास सांस्कृतिक भू-दृश्यों में सर्वाधिक स्पष्ट एवं महत्वपूर्ण रचना है जिसे मनुष्य अपने निवास के लिए, काम करने के लिए विभिन्न सामग्रियों के सामाजिक-सांस्कृतिक एवं राजनीतिक क्रियाओं के सम्पादनार्थ निर्मित करता है। अधिवास या बस्ती शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Settlement' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जो बसाव इकाई के रूप में जनसंख्या समूहन तथा गृहों एवं मार्गों के रूप में उन सुविधाओं का द्योतक है जो उनमें निवास करने वाले लोगों को सेवा प्रदान करते हैं। अधिवास सामान्यतः गृहों या भवनों का समूह होता है। जिस स्थान पर कुछ गृह बने होते हैं वह एक अधिवास या बस्ती को प्रकट करता है। गृह अधिवास के सर्वप्रमुख घटक होते हैं। विभिन्न गृहों तथा अधिवास को अन्य अधिवासों या क्षेत्रों से संयुक्त करने के लिए मार्ग या सड़के बनायी जाती है। इसके अतिरिक्त बाग-बगीचे, खेत, खलिहान, खेल के मैदान, उपवन आदि भी अधिवास से जुड़े होते हैं और अधिवास के ही अंग माने जाते हैं। फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता जीन बूंश ने गृह तथा मार्ग को मानव भूगोल के तीन प्रमुख घटकों में से एक बताया है और इन्हें प्रथम वर्ग के दो आवश्यक तथ्य के रूप में स्वीकार किया है। बूंश के अनुसार अधिवास मानवीय रचनाओं में सर्वाधिक स्पष्ट तथा दूर से ही दिखाई पड़ने वाली ठोस रचना है। उन्होंने मकानों तथा मार्गों के अंतर्गत प्रयुक्त भूमि को मिट्टी का अनुत्पादक प्रयोग बताया है। इसके अंतर्गत प्रयुक्त भूमि का कृषि या पशुपालन जैसे आर्थिक क्रियाओं हेतु उपयोग नहीं हो पाता है। संभवतः इसीलिए बूंश ने गृह तथा मार्गों को अनुत्पादक की संज्ञा दी। वास्तव में वर्तमान समय में गृह और सड़कें दोनों ही उत्पादक है। अधिवास का आकार दो-चार गृहों वाले लघु पुरवा या एकाकी गृह लेकर सैकड़ों-हजारों गृहों वाले महानगर तक विशाल हो सकता है।
अधिवास सांस्कृतिक भू दृश्यों में सर्वाधिक स्पष्ट एवं महत्वपूर्ण रचना है।
अधिवास या बस्ती शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Settlement' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है।
अधिवास सामान्यतः गृहों या भवनों का समूह होता है।
मानव अधिवास के तहत समस्त गृह समूहों को सम्मिलित किया जाता है।
अधिवासों की उत्पत्ति उसके स्थल की उपयुक्तता के आधार पर और इसका विकास परिस्थिति या स्थिति के अनुसार होता है।
अधिवासों के उद्भव को प्रभावित करने वाले कारक है - प्राकृतिक कारक तथा मानवीय कारक।
बस्तियों को बसने के लिए उपयुक्त स्थल के चुनाव में धरातलं के ढाल के साथ ही शैलों की प्रकृति एवं कठोरता पर ही ध्यान देना आवश्यक होता है।
अधिवासों का निर्माण मनुष्यों के रहने तथा अन्य विविध आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया जाता है
जिस स्थान की जलवायु मनुष्यों के विकास के लिए उपयुक्त होती है वहाँ अधिवासों का विकास अधिक होता है।
प्रतिकूल जलवायु दशाओं में अधिवासों का विकास नहीं हो पाता है।
पराकाष्ठा वाली जनांकिकीय दशायें मानव निवास को हतोत्साहित करती है।
अमेरिकी भूगोलवेत्ता हंटिंगटन ने मानव को प्रभावित करने वाले समस्त भौतिक कारकों में जलवायु को ही सर्वप्रमुख बताया है।
समशीतोष्ण जलवायु मानव स्वास्थ्य तथा कार्य क्षमता के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है।
संसार के सभी विकसित देश समशीतोष्ण प्रदेशों में ही स्थित है।
ऊष्ण कटिबन्धीय विकासशील देशों में ग्रामीण जनसंख्या तथा ग्रामों की बहुलता पायी जाती है।
मानव जीवन के लिए वायु के पश्चात् जल ही द्वितीय सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है जिसके बिना जीवन सम्भव नहीं है।
मनुष्य के विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति जल से होती है।
किसी बस्ती का उद्भव उसी स्थान पर हो सकता है जहाँ कोई जल स्रोत या जलाशय उपलब्ध हो।
प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक विश्व के प्रायः सभी बड़े नगरों का विकास किसी न किसी प्रमुख जलस्रोत के निकट हुआ है।
जल का महत्व मरूस्थलों में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
मरूस्थलों में जल के अभाव में प्रायः अधिवासों का अभाव पाया जाता है
मनुष्य को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वनस्पतियों से ही भोजन प्राप्त होता है।
खाद्यान्न तथा शाक-सब्जी वनस्पतियों से ही प्राप्त होते हैं।
सामान्यतः जिस प्रदेश में जिस प्रकार की वनस्पतियां पायी जती है वहाँ उनका उपयोग गृह निर्माण में किया जाता है।
घास के मैदान में घास-फूस की झोपड़ियां अधिक पायी जाती है। वन प्रदेशों में लकड़ी के गृह बहुतायत से पाये जाते हैं।
भूमध्यरेखीय प्रदेशों में झोपड़ियों की अधिकता पायी जाती है।
वन प्रदेशों, पहाड़ियों या नदियों के कन्दराओं के निकट हिंसक पशुओं का भये ज्यादा रहता है जिसके कारण वहाँ एकाकी निवास करना असुरक्षित होता है।
भूमध्यरेखीय प्रदेशों के सघन वनों में विषैले जीव-जन्तुओं के कारण लकड़ी के लट्ठे गाढ़कर उसके ऊपर मचान की झोपड़ियाँ बनायी जाती है।
बस्ती के बसने से पूर्व वहाँ उपलब्ध जीविका के साधनों के विषय में विचार करना आवश्यक होता है।
भूतल के जिस भाग में जीविका का कोई साधन उपलब्ध होता है, वहाँ मानव निवास प्रारंभ होता है।
स्थायी कृषि वाले भू-भागों में स्थायी बस्तियां पायी जाती है।
कृषि कार्य में मनुष्यों के पारस्परिक सहयोग की बड़ी आवश्यकता पड़ती है।
शक्ति संसाधनों, खनिजों की प्राप्ति करने वाले स्थानों पर अनेक प्रकार की असुविधाओं के होते हुए भी अधिवासों का विकास हो जाता है।
आधुनिक युग में शक्ति के साधन के रूप में विद्युत का महत्व बढ़ता जा रहा है।
भारत के ओबरा, बोकारो आदि नगरों का विकास मुख्यतः शक्ति गृहों की स्थापना के कारण हो गया है।
कारखाने की स्थापना के साथ ही नवीन बस्ती का विकास भी शुरू हो जाता है।
दो प्रमुख सड़कों के कटान बिन्दुओं पर नवीन बस्तियों का उदय होता है।
अधिवासों की उत्पत्ति तथा विकास तथा उसके स्वरूप के निर्धारण में विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
ग्रामीण जीवन आपसी सहयोग एवं सहकारिता पर आधारित होता है।
अधिकांश भारतीय ग्रामों में अछूत जातियां मुख्य ग्राम के निकट अलग पुरवा के रूप में निवास करती है।
बस्तियों की आंतरिक संरचना तथा प्रतिरूप पर भी सामाजिक कारकों का प्रभाव पाया जाता गाँवों के सभास्थल के रूप में चौपाल बनाये जाते हैं जहाँ लोग पंचायत, मनोरंजन आदि के लिए एकत्रित होते हैं।
सार्वजनिक भूमि या पंचायत घर के चारों तरफ निवास गृह बनाये जाते हैं।
विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के अपने-अपने पूजा स्थल होते हैं जो ग्रामीण एवं नगरीय दोनों क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
किसी प्रदेश में बस्तियों के विकास तथा वितरण पर नगरीकरण का उल्लेखनीय प्रभाव देखने को मिलता है।
अधिवासों के उद्भव एवं विकास को राजनीतिक कारक भी प्रभावित करते हैं।
अनेक नवीन नगरों तथा ग्रामों को बसाने के लिए स्थल का चुनाव राजनीतिक निर्णय तथा नीति एवं योजना के अनुसार ही किया जाता है।
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- अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
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- अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
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